लघु कथा
एक कंपनी का सुसज्जित कमरा जहाँ मैं, एक अन्य भद्र पुरुष एवं एक भद्र महिला के साथ बैठकर साक्षात्कार कर रहा था. एक अभ्यार्थी के जाने और दुसरे अभ्यार्थी के कमरे में आने के बीच के समय का सदुपयोग करने के ख्याल से अपना फ़ोन उठाया और एक परिचित से बात करने लगा कि तबतक नया अभ्यार्थी का कमरे में आगमन हो गया. मैं खड़े होकर कमरे एक कोने में गया, फुसफुसाकर अपनी बात पूरी की और जल्दी में फ़ोन काटते हुए वापस अपनी जगह पर आकर बैठ गया. तबतक उस लड़की ने सभी शिष्टाचारगत प्रक्रिया पूर्ण कर अपना स्थान ग्रहण कर लिया था और प्रश्नों का दौर शुरू हो चुका था. उसने सभी प्रश्नों के उत्तर न सिर्फ सही दिए थे बल्कि हम तीनों उसकी भाषाई पकड़ के कायल हो चुके थे. हम सबका मन उसपर लटटू हुआ जा रहा था. तभी मेरी नजर उसके रिज्यूमे पर पड़ी जिसमे उसका नाम एमएक्स (Mx.) पाखी लिखा था. मुझे अपनी आखों पर भरोसा नहीं हो रहा था और मेरे अन्दर का आधा मैं जो अब डरकर कह रहा था कि नहीं ऐसा नहीं है के लिए मैंने पूछ लिया कि इसमें तुम्हारे नाम के आगे एमएक्स क्यों लिखा है? मेरे प्रश्न के पूर्ण होते हीं उसने तपाक से बोला क्योंकि मैं ट्रांसजेंडर हूँ ... हिजड़ा समझते हैं न... ?. इसके बाद जैसे मेरे अन्दर कुछ टूट गया. बाकी दोनों के अन्दर भी शायद ऐसा हीं कुछ हुआ था क्योंकि इसके साथ प्रश्नों का सिलसिला टूट चुका था और हम सिर्फ उसे धन्यवाद कह सके. रौशनी का वह पुंज कमरे के बहार जा चुका था और हमारे स्वयं के अंदर एक घुप अँधेरा था जो उस रौशनी से डर गया था.
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