Tuesday, June 26, 2018

निठारी से भी ज्यादा जघन्य अपराध पर सिविल सोसाइटी चुप क्यों ?



बिहार आन्दोलन उर्वरता की धरती है ı आज तक हुए सभी राष्ट्रीय आंदोलनों में बिहार और इसके लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया है ı ऐसे में समाज के मसलों और सामाजिक मुद्दों पर कार्य करने वालों लोगों एवं संगठनों का बहुतायत में होना भी स्वाभाविक है ı वर्तमान समय में अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय, ग्रासरूट सभी स्तर के हजारों स्वयं सेवी संगठन विभिन्न मुद्दों पर अपने-अपने तरीके से कार्यरत हैं ı हलाकि समय के साथ स्वयं सेवी संगठनों का चरित्र भी बदला है और वे प्रोजेक्ट आधारित कामों तक ही सिमित होने लगे हैं तथापि महिलाओं, दलितों, और बच्चों के सवाल पर ये व्यवस्था की कमियों के खिलाफ और न्याय के लिए आवाज मुखर करत रहे हैं ı पिछले कुछ माहों में महिलाओं, अल्पसंख्यकों और दलितों के साथ होने वाले हिंसा के विरुद्ध धरना, भूख हड़ताल, रैली, कैंडल मार्च, प्रतिरोध मार्च, राजभवन मार्च, जैसे कार्यक्रम आयोजित हुए हैं ı लेकिन मुजफ्फरपुर के बालिका गृह में बच्चियों के साथ बलात्कार, शारीरिक हिंसा और देहव्यापार में धकेलने की खबर आने के बाद इन सबकी चुप्पी चिंता का विषय है.

आये दिन बच्चों के अधिकार के सवाल पर पटना के बड़े होटलों में अंतर्राष्ट्रीय स्वयं सेवी संगठनों द्वारा बड़ी-बड़ी कार्यशालाएं आयोजित होती हैं ı इनके आयोजनकर्ताओं में कईयों की पहचान तो सरकार के साथ जन पैरवी कर नीतियों को प्रभावित करने और बच्चों के हित में योजनाओं को गढ़ने वाली है, जाहिर है ये बहुत ही विशेषज्ञ और कमिटमेंट के साथ काम करने वाली संस्थाएं हैं ı लेकिन टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज के “कोशिश” टीम के द्वारा बिहार के गृहों (जिनका सञ्चालन स्वयं सेवी संगठनों द्वारा सरकार के समाज कल्याण विभाग के सहयोग से किया जाता है) के सामाजिक अंकेक्षण का रिपोर्ट आने के बाद और एफ. आई. आर. एवं गिरफ़्तारी के बाद भी इनकी चुप्पी बहुत ही गहरे सवाल करती है जिसका उत्तर तमाम तरह के स्वयं सेवी संगठनों, नेटवर्कों, सोशल एक्टिविस्टों और इस मुद्दे पर कार्यरत प्रोफेशनल्स को देना होगा ı

सबसे चिंता का विषय यह है कि कोई भी बड़ी संस्था, संगठन, नेटवर्क सड़क पर क्यों नहीं उतरा ı बड़े अंतर्राष्ट्रीय संगठन जैसे यूनिसेफ, सेव द चिल्ड्रेन, प्लान इंडिया जो पुरे विश्व में बच्चों के साथ काम करने के लिए जानी जाती है ı ये ऐसी संस्थाएं हैं जो बच्चों के मुद्दे पर कई देशों के सरकार को झकझोरने का मादा रखती हैं ı ये सब न सिर्फ बिहार में काम कर रही हैं बल्कि इन सबकी दमदार उपस्थिति सरकार के अन्दर भी है ı इन सभी अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के कार्यालय पटना में हैं और इनके पदाधिकारी बिहार में बैठते हैं ı विगत कई वर्षों के इतिहास खंगालने पर भी ऐसा कोई जघन्य अपराध का मामला याद नहीं है, और ऐसा मै इस कारण से कह रहा हूँ कि निठारी केस में भी निठारी और उसका नौकर संलिप्त था और लोकल पुलिस शिथिल थी, राजस्थान में हुई अपना घर के केस में भी सिर्फ संचालक की संलिप्तता थी जबकि मुजफ्फरपुर में गृह संचालक से लेकर बाल कल्याण समिति एवं जिला बाल संरक्षण इकाई के पदाधिकारी सभी की संलिप्तता सामने आ रही है और अगर न्यायिक जाँच हो तो बड़े सफेदपोशों के चेहरे भी सामने आयेंगे ı इतने जघन्य अपराध मामले में भी किसी अंतर्राष्ट्रीय संगठन से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है ı यह अपने आप में चिंता का विषय है ı यहां यह उल्लेख करना समीचीन होगा कि निर्भया की घटना के बाद यूनिसेफ ने आधिकारिक बयान जारी किया था (आप इस लिंक पर क्लिक कर देख सकते हैं - http://unicef.in/PressReleases/41/The-UN-in-India-Condemns-the-Gang-Rape-of-Delhi-Student ) जबकि यहाँ कई निर्भया का सवाल है लेकिन यूनिसेफ के कार्यालय से तो दूर बिहार में इसके किसी पदाधिकारी ने अधिकारिक तौर पर कोई बयान भी नहीं दिया है ı

बिहार में एक्शनएड जैसी संस्थाओं की उपस्थिति कम दमदार नहीं है जो किसी भी प्रकार के शोषण और अत्याचार के विरुद्ध लड़ने और अपने जूझारू चरित्र के लिए जाना जाता है, इनकी चुप्पी भी सालती है ı बिहार में एक्शनएड, यूनिसेफ, सेव द चिल्ड्रेन, प्लान इंडिया, कैरितास जैसी अंतर्राष्ट्रीय स्वयं सेवी संगठनों के साथ सैकड़ों ग्रासरूट संगठन और नेटवर्क काम करती हैं जिनकी पकड़ जमीन पर काफी मजबूत है और ये सभी जिलों में काम करने का दावा भी करती हैं खासकर दलित अधिकार, महिला अधिकार, बाल अधिकार, मानव व्यापार जैसे संजीदा मुद्दे पर, लेकिन ये सब खामोश हैं ı इतना ही नहीं बिहार, नोबेल पुरस्कार विजेता माननीय श्री कैलाश सत्यार्थी जी का यह कर्मभूमि रहा है, और आज भी उनका संगठन बचपन बचाओ आन्दोलन यहां कार्यरत है ı ये चुप्पी नैतिक और सैद्धांतिक तौर पर चरित्र से जुड़े सवाल खड़े करती है ı

अगर इनके चुप्पी के कारणों पर ध्यान दें तो सरकार का स्वयं सेवी संगठनों पर बंदिश भी एक बड़ा कारण हो सकता है ı दूसरी बात यह है कि सभी अंतर्राष्ट्रीय संगठन आज सरकार के साथ काम करने या उनके गुड बुक में रहने को इतनी उतावली हैं कि अब ये बिना रीढ़ की हड्डी की हो गई हैं और अपने स्वयं के सिद्धांतों और नैतिकता को इन्होने ताक पर रख दिया है ı इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में केयर इंडिया जैसी संस्थाओं की भरमार है जो सीधे तौर पर परियोजना चलाने में लगी हैं जिनका जमीनी पकड़ नहीं है और ये सरकारी व्यवस्था के गलतियों पर मुहं बंद रखते हैं ı आज अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में प्रोफेशनल (व्यावसायिक) कर्मचारी होते हैं, जो नौकरीहारा तबका है, उसे सिर्फ आदेश पालन और तनख्वाह से मतलब है, उसका कोई सामाजिक सरोकार नहीं है ı

कुछ अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं जो ग्रासरूट संस्थाओं के साथ कार्य कर रही हैं उन्होंने अपने साझेदार संस्थाओं के चयन में बड़े नाम और टर्नओवर को प्राथमिकता दिया है जिससे उनके साथ ऐसी भी संस्थाएं एवं सोशल एक्टिविस्ट जुड़ गए जिनके द्वारा संचालित गृहों को बंद कराया गया था या बाल कल्याण समिति या किशोर न्याय परिषद् में रहते हुए उनपर बाल अधिकार हनन का आरोप लगा है ı ऐसी परिस्थिति में ये संस्थाएं नैतिक तौर पर अपने आप को कमजोर पाती हैं  जिसके कारण अंतर्राष्ट्रीय संगठन चुप हैं ı इसके फलस्वरूप इनके वे साझेदार भी चुप हैं जो सिद्धांत के साथ समझौता नहीं करते हुए जमीन पर पूरी ताकत से लगे हुए हैं ı ऐसा नहीं है कि करने और बदलने का मादा नहीं है ı बस समझौतावदी परिस्थिति से बाहर आने और गर्द को झाड़ने के लिए झकझोरने की जरूरत है ı

ग्रासरूट संगठनों और सोशल एक्टिविस्टों की चुप्पी कम परेशान करने वाली नहीं है क्योंकि ये ही वो लोग हैं जो आज भी संघर्ष का मादा रखते हैं ı पिछले डेढ़ से दो दशकों के बीच बाल अधिकार पर काम करने वाले संगठनों और एक्टिविस्टों पर भी कई आरोप बाल कल्याण समिति या किशोर न्याय परिषद् के सदस्य या बाल/बालिका गृह संचालन (चाहे वह सरकार द्वारा संपोषित हो या किसी अन्य संस्था द्वारा) की भूमिका निर्वाह के दौरान लगे हैं ı इसने इस शक्ति को थोड़ा कमजोर किया है, कम से कम नैतिक तौर पर तो किया ही है ı आज ग्रासरूट संगठनों एवं सोशल एक्टिविस्टों का एक बड़ा तबका किंकर्तव्यविमूढ़ दिखाई दे रहा है, क्योंकि नैतिक और सैद्धांतिक तौर पर दागदार और साफ छवि का ऐसा गडमगड है कि तय करना मुशकिल है कि किसका साथ इस लड़ाई में लिया जाय और किसका नहीं ı हर पहल में ऐसे लोग सड़कों और मंचों पर साथ आकर खड़े हो जाते हैं जो खुद दागदार हैं ı पिछले कई रैली, धरना, प्रदर्शन के बाद कई साथियों ने विरोध किया कि वह व्यक्ति आपके साथ न्याय के लिए खड़ा था और उसपर स्वयं ही समान अपराध का आरोप है ı समझौते ने खासकर चुप रहने की प्रवृति ने हमें (जिसमे मैं खुद भी शामिल हूँ) इतना कमजोर किया है कि हम बदलने का साहस ही नहीं कर पा रहे हैं ı ये आज की वस्तुस्थिति है और ऐसा नहीं है कि सिर्फ कमजोरियां हैं वरन ताकत इससे कहीं ज्यादा हैं ı बस एक बार फिर इसे बटोरने और समझौते की निति से बाहर आने की जरुरत है ı

मुजफ्फरपुर के मामले में लिपा-पोती की गुंजाईश बनी हुई है इसलिए जरुरी है कि पहल की जाय ताकि जिस साफगोई से सरकार ने रिपोर्ट को स्वीकार किया है उसी तत्परता से दोषियों को सजा भी हो ı कहीं ऐसा न हो कि सारी गलतियों का ठिकड़ा एक स्वयं सेवी संगठन पर फोड़ दिया जाय और व्यवस्था के अन्दर बैठी बड़ी मछलियाँ जिनके कारण ऐसे स्वयं सेवी संगठनों का चयन होता है और ये सारा कारोबार चलता है वो बच जाएं ı इसको लेकर कई स्तर पर काम करने की जरूरत है - साफ़ छवि (जिनपर कम से कम बाल अधिकार या इसतरह के कोई गंभीर आरोप न हों) स्वयं सेवी संगठन चाहे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के हों या ग्रासरूट स्तर के, चाहे एक्टिविस्ट हों या प्रोफेशनल उनको इकठ्ठा किया जाये और जहाँ संस्थागत पहचान के साथ आना संभव न हो वहां व्यक्तिगत तौर पर आयें और सरकार पर दबाव बनायें ı जबतक दोषियों को सजा न हो तबतक लगातार एक नागरिक फोरम बनाकर संघर्ष करें ı सरकार पर दबाव बनाया जाय कि टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज द्वारा गृहों के सामाजिक अंकेक्षण की रिपोर्ट को साझा किया जाय और अन्य दोषियों पर भी कार्रवाई होı इसके साथ ही सरकार पर उन नियमों और नीतियों को बदलने का दबाव भी बनाया जिसके कारण “सेवा संकल्प एवं विकास समिति” जैसी संस्थाओं का चयन होता है और अव्यवहारिक बजट में स्वयं सेवी संगठनों को काम दिया जाता है ı सरकार पर दबाव बनाया जाय कि सरकार इसकी न्यायिक जांच किसी वरिष्ट न्यायधीश से कराये ताकि उन पदाधिकारियों पर भी नकेल कसा जा सके जिनके ताल्लुकात कभी न कभी ब्रजेश ठाकुर से रहे हैं ı इसके साथ ही पूर्व में बाल कल्याण समिति या किशोर न्याय परिषद् के सदस्यों पर हुए अन्य केसों/मामलातों को जोड़ा जाय जिनको व्यवस्थागत तौर पर दबाया गया हो ı 

Sunday, June 17, 2018

अपने मसीहा के ख़िलाफ़

जब बोलता हूँ
तो उन्हें बुरा लगता है
क्योंकि ये जो शब्द बान हैं
ज्यादा गहरे
घाव कर जाते हैं
लेकिन ये घाव उन घावों
से ज्यादा दुखदायी नहीं हो सकते हैं
जो तुमने वर्षों से
मेरी आत्मा में सुई चुभोकर
घाव किये हैं
मेरी अगुआवाई का जिम्मा लेकर
जिस अंधेर कमरे में हमे धकेला है
आज ये आवाज
उसी कमरे के घुटन से पैदा हुई है
जिसमे हम तुम्हारी धूर्तता से
पीढ़ी दर पीढ़ी घुटते रहे
और तुम, रौशनी में, हमारे मसीहा बनते रहे
ये आवाज, उस मसीहे के भी खिलाफ है
ये आवाज, उस सत्ता के भी खिलाफ है
हम ये आवाज
रास्ता ढूंढ़ने के लिए नहीं लगा रहे हैं
बल्कि उस शोषक और हमारे मसीहा दोनों के
बनाये उस तिलिस्मी कारागार
को उड़ा देने के लिए लगा रहे हैं
आवाज से जब वो इतना दुःखी हो रहा है
तो सोंचो
उनके तिलिस्म के टुकड़े
जब उनपर गिरेंगे तो
क्या होगा ?
वो बौखलायेंगे, चिल्लायेंगे,
मिलकर हमले करेंगे
इतना ही नहीं
हमारे ही टुकड़े करने की कोशिशें करेंगे
घबराना नहीं, बहक जाना नहीं
ये तम मिटेगा
उजाला आएगा ,
इस रात की सुबह जरूर होगी
बस अपनी आवाज़ें बुलंद करते रहो
उनके ख़िलाफ़ जो हमे लूटते रहे
और अपने मसीहे के ख़िलाफ़
जिसने हमे लड़ने नहीं दिया

Tuesday, June 12, 2018

ईमान

आज सर-ऐ-राह लगी है मेरे ईमान की बोली
मेरा ईमान खरीदकर अपना ईमान ऊँचा कर ले

#शब्दांश /रणविजय

कहां से लाऊँ

अपना सर पाषाण पर पटक लो
या अपनी बुद्धि को रेती से घस लो
सच की पहचान तो तुझे खुद करनी होगी
तेरे लिए अब दूसरा कबीर कहां से लाऊँ

इंसानियत के दरकते रिश्तों से सीख लो
या फिर वीरान हुई गलियों से पूछ लो
जागकर अब आह्वान तुझे ही करनी होगी
तेरे लिए अब पंत और दुष्यंत कहां से लाऊँ

#शब्दांश / रणविजय

Monday, June 11, 2018

नेता कल और आज

पहले एक नेता होता था
उसका एक विज़न (दृष्टि) होता था
उसका अनुयायी होता था
जो उस विज़न से सहमत होता था
जो उसका अनयुयायी होता था
उसका एक सिद्धांत होता था
वह उसपर चलता था
उसकी भाषा संसदीय होती थी
उसके केंद्र में जनता होती थी।

आज एक नेता होता है
उसके पास ढेर सारा पैसा होता है
उसका चमचा होता है
उसे नेता के सोंच के बारे में पता नही होता
जो उसके पीछे पीछे घूमता है
उसके मन मे आकांक्षा होती है
वह उसके लिए भटकता है
उसकी गालियों की भाषा होती है
उसके केंद्र में लालच होती है
#तटस्थ / रणविजय

माय बेंच के मौसी खरीदते हैं

आज सपने में
दूसरी माँ आई थी
वो वाली नहीं
जिसने हमें जन्म दिया
वो वाली भी नहीं
जिसने हमें शरण दिया
बल्कि वो वाली
जिसने हमें
इस लायक बनाया
कि हम समझ सकें
समझा सकें
लिख सकें
और बता सकें
बोली और भाषा की माँ
और पूछ रही थी
हम सबके बारे में
अपने सब नालायक
बच्चों के बारे में
पूछ रही थीं
कि क्या अस्तित्व समाप्त हो जाएगा
मैथिली का, भोजपुरी का,
मगही का, हिंदी का
और बाकी सब बहनों का
जो अलग अलग गांवों
कस्बों और शहरों में
रहती हैं
कह रही थीं
की तुम्हारी अंग्रेजी वाली
मौसी का तो खूब बोलबाला है
मैने भी गुस्से में
कह दिया कि
वैसे भी हम
माय बेंच के मौसी खरीदते हैं
इसमें नया क्या है
लेकिन तुम पूछ रही हो
तो सबसे पूछ के बताएंगे
अब आपके जवाब का इन्तेजार है ...

#शब्दांश / रणविजय

जे पी के नाम पत्र


सेवा में,
लोकनायक जय प्रकाश नारायण,
स्वर्ग लोक, आसमान

द्वारा : नारदमुनि, स्वर्गलोक डाक सेवा, इन्द्रपुरी.

विषय: बिहार आगमन के सन्दर्भ में.


माननीय  महोदय ,


क्षमा कीजियेगा अगर यह संबोधन उचित न हुआ तो क्योंकि मैं आपके चेलों के तरह न ही लच्छेदार भाषण जानता हूँ ना ही उतनी अच्छी भाषाई पकड़ है. ये अलग बात है कि ये भी आपके चेलों के मेहरबानी से ही है, क्योंकि जब इस प्रदेश की बागडोर आपके चेलों के हाथ में आई (आपकी मेहरबानी से या आपके गलत निर्णय से या इन्होने आपको धोखा दिया ये तो आप ही बेहतर बता सकते हैं) इन्होने सबसे पहले सरकारी शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त किया ताकि गरीब गुरबों के बच्चे पढ़ ना सके. अब तो बच्चों को कुल प्राप्तांक 50 के पेपर में 60 अंक आते हैं ... गुरूजी गाय, बकरी गिनते हैं और चुनाव करवाते हैं और बच्चे खिचड़ी खाकर घर चले जाते हैं ... आपको बताऊँ कि आपके चेले बहुत चालू हो गए हैं इन्होने एक तीर से दो निशाने लगाये हैं पहली की राज्य में निजी शिक्षा का जबरदस्त धंधा जमाया है जिसका लाभ इन्हें भी मिलता है, और दूसरी की जब अच्छी शिक्षा व्यवस्था नहीं होगी तो गरीब लोग पढ़ लिखकर अपना हक़ नहीं मांगेगे और इनके पीछे जिंदाबाद-मुर्दाबाद करेंगे. ये मत समझिएगा कि मैं आन्दोलन या मुद्दा आधारित संघर्ष के विरुद्ध हूँ लेकिन जिस प्रकार का संघर्ष इन्होने कायम किया हुआ है उसके पीछे जिन्दाबाद-मुर्दाबाद तो कोई भी पढ़ा-लिखा सजग इन्सान नहीं करेगा.

अब आप परेशान हो रहे होंगे कि अभी ये सब आपको क्यों बता रहा हूँ ... ऐसा है कि जो स्वर्ग सिधार जाते हैं (जैसा मुझे लगता है कि आप अपने अच्छे कर्मों से वहीं गए होंगे) उन्हें दो ही दिन याद किया जाता है एक जन्मदिन के दिन दूसरा मरन दिन के दिन.. खैर ये परंपरा तो राजनीति की है और मैं न कोई राजनेता हूँ न ही आपका चेला... आगे जो बताने जा रहा हूँ यह मान कर ही बताऊंगा कि अभी तक आपको अपने चेलों से भेट नहीं हुई होगी (क्योंकि आपके बाद उन्होंने जो किया उसके बाद आप जहाँ हैं वहां तो वे जा नहीं सकते हां विपरित वाले मकान में होंगे) नतीजतन आपको यहां की खबर नहीं होगी. आप सोंच भी रहे होंगे कि  मेरे जाने के बाद क्या हुआ सो मैंने आपको खबर करने का बीड़ा उठाया है ... हाँ एक बात तो बताना हीं  भूल गया कि अभी क्यों जबकि न आपके स्वर्ग सिधारने का दिवस है न ही जन्मदिन ... मुझे लगता है कि आपको याद होगा कि  5 जून 1974 को आपने सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया था गाँधी मैदान में और अभी जून का महिना है ... अब आपके चेले ने तो इस दिवस का कुछ किया नहीं भले सीता नवमी को सरकारी छुट्टी बना दिया.... मेरे लिए तो पूरा महिना समपूर्ण क्रांति का है तो इस महीने थोड़ा ज्यादा एक्टिव हो गया हूँ (लिखने लगा हूँ ब्लॉग और फेसबुक पर) सो सोंचा कि आपको एक पत्र लिख दूँ ...

अब आपके चेलों (प्रचंड चेलों की बात करूँगा) की बात बताता हूँ ... एक जो था मचंड उसको सबसे पहले सत्ता मिली और सबसे पहले उसने आपके आदर्शों को शीशा वाला बोइयाम में बंद करके ताख पर रख दिया और जनता को इतना परेशान किया कि उसको जंगल राज कहा जाता है ... अब ये अलग बात है कि जंगल में भी इतना ज्यादा अंधेरगर्दी होता है कि नहीं ये तो जंगल का जानवर सब ही बताएगा और उससे बात करने का भाषा हमको आती नहीं ... तो जब आपका इ समूह वाला चेला सब आपके पास या आपके सामने वाला मकान में जायेगा, तो ओकरे जंगल में भेजिएगा जानवर सब से बात करने... आपके इ चेलवा का एगो खूबी है इ धर्मनिरपेक्षता का पोषक है लेकिन ज्यादा मुस्कुराइए मत कि आपके सिद्धतांत को मानता है .. इ सब खाली वोट के खेला है ... अभी फुलवारी में जब झड़प हो गया तब उसमे दुनो एकर वोटर था ... एही डरे कौनो नहीं गया ... खैर ये निर्णय आपही ले लीजिये.. 
  
इसके उपरांत आपके दुसरे चेला का नंबर आता है ... जनता इतनी दुखी थी कि आपके इस चेले में लोगों को आशा दिखी कि कुछ बदलेगा ... और कुछ बदलाव हुआ भी कम से कम अब आप बिहार आयेंगे तो सड़क मार्ग से अपने सभी आन्दोलनकारियों से मिलने जा सकेंगे बस गाड़ी बड़ा रखना होगा... वो क्या है कि सबको आदत थी कच्ची सड़क या टूटे हुए सड़क के किनारे रहने का... अब सड़क बन गया तो गाड़ी तेज चलती है और सबको डर लगता है ... सब अपने अपने घर के सामने इतना ऊँचा-ऊँचा ब्रेकर बना दिया है ... ब्रेकर तो अब समाज में हर दबंग (बेवकूफ) के घर के सामने बन गया है... खैर आपके इस चेले की सबसे बड़ी खूबी है बंदी (प्रतिबन्ध, निषेध) ... इन्होने ढेर सारी बंदी की है ... शराब बंदी, दहेज़ बंदी, बाल विवाह बंदी अब खैनी बंदी भी होने वाला है .... अब आपके इस चेले को बंदी ही हर समस्या का समाधान लगता है ... हो सकता है कि आने वाले समय में जनसँख्या नियंत्रण के लिए विवाह की बंदी भी कर सकता है...

आपके चेलों का तीसरा समूह जो है; वो अभी और पहले भी शासन में तो रहा लेकिन दूसरे चेले के साथ ही रहा... ये हिन्दुओं को मुसलमानों से लड़ाते हैं ताकि इनकी राजनीति हिंदुत्व के मुद्दे पर चलती रहे और आपके पहले समूह के चेले की राजनीति मुसलमानों को बचाने के दम पर चलती रहे... आपके चेलों के इस समूह में तो कई ऐसे लोग हैं जो केंद्र के जनसंघ (अब उसे भाजपा कहते हैं ये जानकारी तो आपको है ही फिर भी लिख दिया ताकि सनद रहे) सरकार में मंत्री हैं और एक जो है (जिसको आपने स्टीयरिंग कमिटी में रखा था ) वो लोगों को ये समझाने की कोशिश कर रहा है कि अभी जो संविधान है वो डुप्लीकेट है और ओरिजिनल वाला उसके पास है ... वो संविधान बदलने की कवायद कर रहा है ... मैं तो उस समय था नहीं आप ही थे तो आप ही बेहतर बता सकते हैं कि ओरिजिनल वाला कौन है ...

आपके चेलों का एक और समूह है जो सीधे तौर पर इन तीनों के साथ तो नहीं है पर इनका पक्षसमर्थन करता है और आपके सिद्धांत के बारे में कम से कम बात तो करता ही है.... इसमें से ज्यादा लोग राजधानी की विभिन्न वातानुकूलित कमरे में संघर्ष और 74 की बात करते मिल जायेंगे ... कुछ हैं जो कोशिश में लगे हैं आपके दिशानिर्देशों के अनुसार लेकिन किसी भी नये विकल्प के विरुद्ध हैं और ज्यादातर अप्रत्यक्ष रूप से तीनों में से किसी न किसी का समर्थन करते रहते हैं.... अब इनका बूढ़ा तन और मन कोई बदलाव नहीं ला सकता ... इनमे आप वाली बात नहीं है... अब आपको ही आना पड़ेगा ...

अंत में आपसे निवेदन है कि आप आइये हम सब आपके साथ खड़े होने को तैयार हैं ... एक बात लेकिन बता दे रहा हूँ कि नये लोगों के नेतृत्व के लिए आपको अपने मन और तन को तैयार करना होगा ... अपने पूर्व के चेलों के भरोसे मत आइयेगा नहीं तो जिनको आपने प्रधानमंत्री बनाया था उन्होंने जो टका सा जवाब आपको दिया था वही इनसबसे आपको मिलेगा ...

विश्वासभाजन 

रणविजय कुमार 
एक पीड़ित और आशान्वित बिहारी  

Sunday, June 10, 2018

जय हो बंदी कुमार

शिक्षा का बंटाधार, हर जगह वयाप्त भ्रस्टाचार है
हर रोज महिलाओं का होता बलात्कार है
क्योंकि अब यहां
विकास और सुशासन की सरकार है

मजदूर मजबूर, युवा बेरोजगार है
जनता पर कर और मँहगाई की मार है
क्योंकि अब यहां
सामाजिक न्याय की सरकार है

किसान बेबस और लाचार है
सरकारी नीतियों में बंदी की भरमार
क्योंकि अब यहां
नेता बंदी कुमार है

Saturday, June 9, 2018

हमारा बंटवारा

वो देखो वहाँ दूर
वो दोनो
अपनी जागीर का
बंटवारा कर रहा है

और जाने क्यों
रह रहकर
हमारी ओर
इशारा कर रहा है

क्या है जिसका
बंटवारा कर रहा है
क्यों हमारी ओर
इशारा कर रहा है

कुछ तो है
हमारा उसमे
पर हमीं को
किनारा कर रहा है

देखो वो दूर खड़ा
हमारा विधाता बना
हमारा ही
बंटवारा कर रहा है

#शब्दांश/रणविजय

मैं अभी जिंदा हूँ

मैं भी इसी देश का बाशिंदा हूँ

मैं बोल रहा हूँ क्योंकि ज़िंदा हूँ

तू नेतृत्वकर्ता है इसीलिए शर्मिंदा हूँ

कि हदे पर न कर अभी मैं ज़िंदा हूँ

तुझे अर्श पर ले जाने वाला कारिंदा हूँ

बोटियां न नोच कि अभी मैं जिंदा हूँ

पर कतर तो देगा क्योंकि मैं परिन्दा हूँ

पर ये मत जाना भूल कि अभी मैं ज़िंदा हूँ

#शब्दांश/रणविजय

युवा

वे आवाज नही उठाते
उनके गले में खराश है
वे अब सपने नहीं देखते
सबके सब निराश हैं
अब दौड़ नही पाते
क्योंकि वे बदहवाश हैं
वे तुम्हारा झंडा ढोते
उन्हें कुछ तलाश है
तेरे दोमुंहेपन के चलते
युवाओं का सत्यानाश है

#शब्दांश / रणविजय

एक अधूरी कविता

ये उछलते-कूदते शब्द अख़बारों के ये चीखती आवाजें बुद्धू-बक्सदारों के ये अजीब बेचैनी इन रसूखदारों के ये छलांग, ये चीखें, ये बेचैनी, ये फ...