Tuesday, June 26, 2018
निठारी से भी ज्यादा जघन्य अपराध पर सिविल सोसाइटी चुप क्यों ?
Sunday, June 17, 2018
अपने मसीहा के ख़िलाफ़
जब बोलता हूँ
तो उन्हें बुरा लगता है
क्योंकि ये जो शब्द बान हैं
ज्यादा गहरे
घाव कर जाते हैं
लेकिन ये घाव उन घावों
से ज्यादा दुखदायी नहीं हो सकते हैं
जो तुमने वर्षों से
मेरी आत्मा में सुई चुभोकर
घाव किये हैं
मेरी अगुआवाई का जिम्मा लेकर
जिस अंधेर कमरे में हमे धकेला है
आज ये आवाज
उसी कमरे के घुटन से पैदा हुई है
जिसमे हम तुम्हारी धूर्तता से
पीढ़ी दर पीढ़ी घुटते रहे
और तुम, रौशनी में, हमारे मसीहा बनते रहे
ये आवाज, उस मसीहे के भी खिलाफ है
ये आवाज, उस सत्ता के भी खिलाफ है
हम ये आवाज
रास्ता ढूंढ़ने के लिए नहीं लगा रहे हैं
बल्कि उस शोषक और हमारे मसीहा दोनों के
बनाये उस तिलिस्मी कारागार
को उड़ा देने के लिए लगा रहे हैं
आवाज से जब वो इतना दुःखी हो रहा है
तो सोंचो
उनके तिलिस्म के टुकड़े
जब उनपर गिरेंगे तो
क्या होगा ?
वो बौखलायेंगे, चिल्लायेंगे,
मिलकर हमले करेंगे
इतना ही नहीं
हमारे ही टुकड़े करने की कोशिशें करेंगे
घबराना नहीं, बहक जाना नहीं
ये तम मिटेगा
उजाला आएगा ,
इस रात की सुबह जरूर होगी
बस अपनी आवाज़ें बुलंद करते रहो
उनके ख़िलाफ़ जो हमे लूटते रहे
और अपने मसीहे के ख़िलाफ़
जिसने हमे लड़ने नहीं दिया
Tuesday, June 12, 2018
कहां से लाऊँ
अपना सर पाषाण पर पटक लो
या अपनी बुद्धि को रेती से घस लो
सच की पहचान तो तुझे खुद करनी होगी
तेरे लिए अब दूसरा कबीर कहां से लाऊँ
इंसानियत के दरकते रिश्तों से सीख लो
या फिर वीरान हुई गलियों से पूछ लो
जागकर अब आह्वान तुझे ही करनी होगी
तेरे लिए अब पंत और दुष्यंत कहां से लाऊँ
#शब्दांश / रणविजय
Monday, June 11, 2018
नेता कल और आज
पहले एक नेता होता था
उसका एक विज़न (दृष्टि) होता था
उसका अनुयायी होता था
जो उस विज़न से सहमत होता था
जो उसका अनयुयायी होता था
उसका एक सिद्धांत होता था
वह उसपर चलता था
उसकी भाषा संसदीय होती थी
उसके केंद्र में जनता होती थी।
आज एक नेता होता है
उसके पास ढेर सारा पैसा होता है
उसका चमचा होता है
उसे नेता के सोंच के बारे में पता नही होता
जो उसके पीछे पीछे घूमता है
उसके मन मे आकांक्षा होती है
वह उसके लिए भटकता है
उसकी गालियों की भाषा होती है
उसके केंद्र में लालच होती है
#तटस्थ / रणविजय
माय बेंच के मौसी खरीदते हैं
आज सपने में
दूसरी माँ आई थी
वो वाली नहीं
जिसने हमें जन्म दिया
वो वाली भी नहीं
जिसने हमें शरण दिया
बल्कि वो वाली
जिसने हमें
इस लायक बनाया
कि हम समझ सकें
समझा सकें
लिख सकें
और बता सकें
बोली और भाषा की माँ
और पूछ रही थी
हम सबके बारे में
अपने सब नालायक
बच्चों के बारे में
पूछ रही थीं
कि क्या अस्तित्व समाप्त हो जाएगा
मैथिली का, भोजपुरी का,
मगही का, हिंदी का
और बाकी सब बहनों का
जो अलग अलग गांवों
कस्बों और शहरों में
रहती हैं
कह रही थीं
की तुम्हारी अंग्रेजी वाली
मौसी का तो खूब बोलबाला है
मैने भी गुस्से में
कह दिया कि
वैसे भी हम
माय बेंच के मौसी खरीदते हैं
इसमें नया क्या है
लेकिन तुम पूछ रही हो
तो सबसे पूछ के बताएंगे
अब आपके जवाब का इन्तेजार है ...
#शब्दांश / रणविजय
जे पी के नाम पत्र
माननीय महोदय ,
क्षमा कीजियेगा अगर यह संबोधन उचित न हुआ तो क्योंकि मैं आपके चेलों के तरह न ही लच्छेदार भाषण जानता हूँ ना ही उतनी अच्छी भाषाई पकड़ है. ये अलग बात है कि ये भी आपके चेलों के मेहरबानी से ही है, क्योंकि जब इस प्रदेश की बागडोर आपके चेलों के हाथ में आई (आपकी मेहरबानी से या आपके गलत निर्णय से या इन्होने आपको धोखा दिया ये तो आप ही बेहतर बता सकते हैं) इन्होने सबसे पहले सरकारी शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त किया ताकि गरीब गुरबों के बच्चे पढ़ ना सके. अब तो बच्चों को कुल प्राप्तांक 50 के पेपर में 60 अंक आते हैं ... गुरूजी गाय, बकरी गिनते हैं और चुनाव करवाते हैं और बच्चे खिचड़ी खाकर घर चले जाते हैं ... आपको बताऊँ कि आपके चेले बहुत चालू हो गए हैं इन्होने एक तीर से दो निशाने लगाये हैं पहली की राज्य में निजी शिक्षा का जबरदस्त धंधा जमाया है जिसका लाभ इन्हें भी मिलता है, और दूसरी की जब अच्छी शिक्षा व्यवस्था नहीं होगी तो गरीब लोग पढ़ लिखकर अपना हक़ नहीं मांगेगे और इनके पीछे जिंदाबाद-मुर्दाबाद करेंगे. ये मत समझिएगा कि मैं आन्दोलन या मुद्दा आधारित संघर्ष के विरुद्ध हूँ लेकिन जिस प्रकार का संघर्ष इन्होने कायम किया हुआ है उसके पीछे जिन्दाबाद-मुर्दाबाद तो कोई भी पढ़ा-लिखा सजग इन्सान नहीं करेगा.
रणविजय कुमार
एक पीड़ित और आशान्वित बिहारी
Sunday, June 10, 2018
जय हो बंदी कुमार
शिक्षा का बंटाधार, हर जगह वयाप्त भ्रस्टाचार है
हर रोज महिलाओं का होता बलात्कार है
क्योंकि अब यहां
विकास और सुशासन की सरकार है
मजदूर मजबूर, युवा बेरोजगार है
जनता पर कर और मँहगाई की मार है
क्योंकि अब यहां
सामाजिक न्याय की सरकार है
किसान बेबस और लाचार है
सरकारी नीतियों में बंदी की भरमार
क्योंकि अब यहां
नेता बंदी कुमार है
Saturday, June 9, 2018
हमारा बंटवारा
वो देखो वहाँ दूर
वो दोनो
अपनी जागीर का
बंटवारा कर रहा है
और जाने क्यों
रह रहकर
हमारी ओर
इशारा कर रहा है
क्या है जिसका
बंटवारा कर रहा है
क्यों हमारी ओर
इशारा कर रहा है
कुछ तो है
हमारा उसमे
पर हमीं को
किनारा कर रहा है
देखो वो दूर खड़ा
हमारा विधाता बना
हमारा ही
बंटवारा कर रहा है
#शब्दांश/रणविजय
मैं अभी जिंदा हूँ
मैं भी इसी देश का बाशिंदा हूँ
मैं बोल रहा हूँ क्योंकि ज़िंदा हूँ
तू नेतृत्वकर्ता है इसीलिए शर्मिंदा हूँ
कि हदे पर न कर अभी मैं ज़िंदा हूँ
तुझे अर्श पर ले जाने वाला कारिंदा हूँ
बोटियां न नोच कि अभी मैं जिंदा हूँ
पर कतर तो देगा क्योंकि मैं परिन्दा हूँ
पर ये मत जाना भूल कि अभी मैं ज़िंदा हूँ
#शब्दांश/रणविजय
युवा
वे आवाज नही उठाते
उनके गले में खराश है
वे अब सपने नहीं देखते
सबके सब निराश हैं
अब दौड़ नही पाते
क्योंकि वे बदहवाश हैं
वे तुम्हारा झंडा ढोते
उन्हें कुछ तलाश है
तेरे दोमुंहेपन के चलते
युवाओं का सत्यानाश है
#शब्दांश / रणविजय
एक अधूरी कविता
ये उछलते-कूदते शब्द अख़बारों के ये चीखती आवाजें बुद्धू-बक्सदारों के ये अजीब बेचैनी इन रसूखदारों के ये छलांग, ये चीखें, ये बेचैनी, ये फ...
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ये उछलते-कूदते शब्द अख़बारों के ये चीखती आवाजें बुद्धू-बक्सदारों के ये अजीब बेचैनी इन रसूखदारों के ये छलांग, ये चीखें, ये बेचैनी, ये फ...
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सामाजिक सरोकारों को लेकर समाज में चिंतन का तक़रीबन शून्यता के स्तर तक पहुँच जाना , चिंता का विषय है। एक तरफ तो इसने हमारे बीच संवेदनही...
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photo credit: aajtak मुजफ्फरपुर मामले में बच्चियों के इंसाफ की लड़ाई अब उसी दिशा में जा रही है जिस दिशा में उसे जाने से रोकने के ...