पहले एक नेता होता था
उसका एक विज़न (दृष्टि) होता था
उसका अनुयायी होता था
जो उस विज़न से सहमत होता था
जो उसका अनयुयायी होता था
उसका एक सिद्धांत होता था
वह उसपर चलता था
उसकी भाषा संसदीय होती थी
उसके केंद्र में जनता होती थी।
आज एक नेता होता है
उसके पास ढेर सारा पैसा होता है
उसका चमचा होता है
उसे नेता के सोंच के बारे में पता नही होता
जो उसके पीछे पीछे घूमता है
उसके मन मे आकांक्षा होती है
वह उसके लिए भटकता है
उसकी गालियों की भाषा होती है
उसके केंद्र में लालच होती है
#तटस्थ / रणविजय
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