Tuesday, August 14, 2018

एक अधूरी कविता

ये उछलते-कूदते शब्द अख़बारों के

ये चीखती आवाजें बुद्धू-बक्सदारों के

ये अजीब बेचैनी इन रसूखदारों के

ये छलांग, ये चीखें, ये बेचैनी, ये फिसलन

ये लड़ाई नहीं है न्याय के दरकारों की

न कर भरोसा इन शेख-सरदारों का

ये अब जंग है तुम हकदारों का

ए उठ जाग तू अब आवाज लगा

तेरे, तेरा, तू, तुम्हारा ...................


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एक अधूरी कविता

ये उछलते-कूदते शब्द अख़बारों के ये चीखती आवाजें बुद्धू-बक्सदारों के ये अजीब बेचैनी इन रसूखदारों के ये छलांग, ये चीखें, ये बेचैनी, ये फ...