ये उछलते-कूदते शब्द अख़बारों के
ये चीखती आवाजें बुद्धू-बक्सदारों के
ये अजीब बेचैनी इन रसूखदारों के
ये छलांग, ये चीखें, ये बेचैनी, ये फिसलन
ये लड़ाई नहीं है न्याय के दरकारों की
न कर भरोसा इन शेख-सरदारों का
ये अब जंग है तुम हकदारों का
ए उठ जाग तू अब आवाज लगा
तेरे, तेरा, तू, तुम्हारा ...................
ये चीखती आवाजें बुद्धू-बक्सदारों के
ये अजीब बेचैनी इन रसूखदारों के
ये छलांग, ये चीखें, ये बेचैनी, ये फिसलन
ये लड़ाई नहीं है न्याय के दरकारों की
न कर भरोसा इन शेख-सरदारों का
ये अब जंग है तुम हकदारों का
ए उठ जाग तू अब आवाज लगा
तेरे, तेरा, तू, तुम्हारा ...................
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