Tuesday, May 29, 2018

क्योंकि मैं मजदूर हूँ


तेरे वादों के करीब
तेरे कृत्यों से दूर हूँ
हक़ की बात नहीं करता
क्योंकि मैं मजदूर हूँ

हर सितम सहता हूँ
उफ़ नहीं करता हूँ
तख़्त नहीं पलटता मजबूर हूँ
क्योंकि मैं मजदूर हूँ

खड़ा रहता हूँ चौराहे पर
ताकि दो हाथों को काम मिले
रोटी की जद्दोजहद में चूर हूँ
क्योंकि मैं मजदूर हूँ

खेतों में या अट्टालिकाओं पर
खून जलाता दिख जाता हूँ
बदबूदार पसीने से सराबोर हूँ
क्योंकि मैं मजदूर हूँ

तेरी कुर्सी की ओर देखते
पीढियां बीत गई सोंचते
बदलाव और विकास से दूर हूँ
क्योंकि मैं मजदूर हूँ ....




(तस्वीर स्रोत : DNA India)

चिमचिम्मी माता


सुबह दूध लाने का काम घर के लड़कों या बुजुर्गों को दिया जाता है, नतीजतन उस दिन यह काम मुझे मिला क्योंकि मैं प्रथम वाले श्रेणी में आता था। जब दूध लेने ग्वाले के पास पहुँचा तो पता चला कि गाय माता ने नाराज़ होकर बाल्टी में लात मार दिया है, और सारा दूध धरती पर ऐसे बिखर गया जैसे गाय माता ने धरती को दूधों नहाओ और पूतों फलो का आशीर्वाद दिया हो। यह भी देखकर स्पष्ट था कि गाय माता की डंडे से अच्छी पूजा हुई है और जब मैंने दूध का पूछा तो कहानी सुनाते-सुनाते ग्वाले ने दो-तीन और जमा दिए। खैर, मुझे क्या, मैं सुधा डेयरी का दूध लेकर घर पहुँचा क्योंकि यह तो अनिवार्य सेवा थी। इसके बिना एक बच्चे की खिलखिलाहट क्रंदन में और बाकी सबके चाय की तलब भी नाराजगी में तब्दील हो जाती।

मैं इतना बड़ा हो चुका था कि घर के सुबह की चाय का अधिकारपूर्वक हिस्सेदार बन सकूँ। क्योंकि हमारे यहाँ चाय एक उम्र के बाद ही अधिकारपूर्वक मिलता है अन्यथा इसे पाने के लिए जिद और आंसुओं के सहारे सत्याग्रह करना पड़ता है। इस सत्याग्रह में सरकार कभी मांगें मान लेती है और कभी लाठीचार्ज, आंसू गैस के गोले, पानी की बौछारें भी झेलने पड़ते हैं। खैर, उस सुबह जो चाय मिली थी वह अधिकारपूर्वक ही मिली थी। मेरे मामाजी का ढाई साल का बेटा कृष्णा भी वहीं बैठा था और चूँकि वह चाय पीने के लिए वह अधिकृत नहीं था, इसलिए उसे दूध दिया गया था।

उसने दूध का ग्लास यह कहते हुए फ़ेंक दिया कि मैं चिमचिम्मी (पॉलिथीन) माता दूधू (दूध) नहीं पिऊँगा। सबने हँसना शुरू कर दिया। वह कौतुहलवश सबको देखता रहा । हर रोज़, सब उसे सिखाते थे कि गाय माता दूध देती है। उस बालमन ने यह सिखा कि दूध देने वाली माता होती है। इसलिए दूध चिमचिम्मी ने दिया है तो वह भी माता ही होंगी । उसे कहाँ पता था कि दूध तो भैंस, बकरी, भेंडे भी देती हैं, लेकिन वे विधर्मी हैं, इसलिए वो माता नहीं, अगर ये सब हिन्दू होती तो ये भी माता होती और यही हाल चिमचिम्मी का भी है।

Friday, May 25, 2018

बिहार को कौन बचाएगा नॉन-परफोर्मिंग मुखिया और विपक्ष के कहिलियत से


नॉन-परफोर्मिंग एसेट जब बैंकों में बहुत अधिक हो जाता है तो उस विषम परिस्थिति से निकलने के लिए उन्हें काफी जद्दोजेहद करनी पड़ती है । लेकिन जब देश और राज्य में नॉन-परफोर्मिंग नेतृत्व और शासन व्यवस्था हो तो इनकी कहिलियत का खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है । किसी भी लोकतांत्रिक समाज के लिए सबसे विषम परिस्थिति होती है जब सत्ता हमलावर हो जाये और बिहार इसी परिस्थिति का सामना कर रहा है । बिहार में गरीब और मजबूर जनता लाचार है, और शासन व्यवस्था हमलावर हो रही है । विपक्ष अपने राजकुमार के जागने का इन्तजार कर रही है, और राजकुमार इस इन्तजार में है कि इस विषम परिस्थिति के विपरित कोई विकल्प न होने का फायदा उन्हें ही मिलेगा। इसलिए बिहार में महिलाओं, दलितों और पिछड़ों पर लगातार बढ़ते हमले के विरुद्ध बोलने के बजाय राजकुमार राजा साहेब से जेल में मिलने और शादी में ठुमके लगाने में हीं व्यस्त रहते हैं, जमीन पर जाने की फुर्सत नहीं है हाँ कभी कभार यात्रा कर लेते हैं । विपक्ष जनादेश के अपमान का यात्रा निकालता है और सत्ता पक्ष समीक्षा यात्रा। आम जन के समस्याओं की किसी को नहीं पड़ी ।
बिहार के मुखिया की सुशासन बाबू वाली छवि को बचाने के लिए पूरा पुलिस और प्रशासनिक महकमा जिस प्रकार से लगा हुआ है, उससे लोगों की दुश्वारियां बढ़ना तो लाजिमी है । लेकिन जिस प्रकार से बिहार में महिलाओं और दलितों पर हो रहे अत्याचार को रिपोर्ट होने से रोका जाता है या तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है वह इस तश्वीर को और भयावह  बना रही है । मूक-बधिर मीडिया एवं राज्य के अन्दर स्वतंत्र आवाजों को दबाने की कवायद गरीब और मजलूमों के न्याय पाने की उम्मीद को और धुंधला कर रहा है । इसका सबसे ताजा उदहारण है जहानाबाद में एक दलित नाबालिग बच्ची के साथ हुई सामूहिक बलात्कार एवं उस केस के लीपा-पोती  में प्रशासन  की भूमिका ।
जहानाबाद में एक लड़की के साथ कई लड़कों द्वारा सामूहिक रूप से छेड़-छाड़ वाला विडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसके बाद ये मामला प्रकाश में आया । जब सामाजिक कार्यकर्ताओं के दल ने पीड़िता से मिलकर बात की तब कई चौकाने वाले तथ्य सामने आये । यहां यह बताना समीचीन होगा कि सामाजिक कार्यकर्ताओं के कई दलों ने पीड़िता से मिलने की कोशिश की लेकिन वहां तैनात पुलिस पदाधिकारियों ने किसी को मिलने नहीं दिया । एक जांच दल जिसमें पटना से पद्मश्री सुधा वर्गीस, कंचन बाला, रजनी, अशोक कुमार, मणिलाल एवं जहानाबाद से मीरा यादव एवं मिथिलेश यादव थे 05 मई 2018 को पीड़िता से मिलने पहुंचे तो पीड़िता के अभिभावक के कहने के बावजूद ऊपर से आदेश का हवाला देकर पुलिस ने इन्हें पीड़िता से मिलने से रोका लेकिन आदेश को कॉपी की मांग करने और अपने आला अधिकारी से बात कराने के लिए कहने पर पुलिस ने दल के सदस्यों को पीड़िता से मिलने दिया । इसके बाद इस दल के महिला सदस्यों ने पीड़िता से मुलाकात की ।
जांच दल के सदस्यों एवं इनके द्वारा साझा किये गए रपट के अनुसार पीड़िता को सुरक्षा के नाम पर तक़रीबन नजरबन्द कर दिया गया है । पीड़िता ने बताया कि उसके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ है, और उसने जो बयान दर्ज कराया है, उसमे उसने बलात्कार की बात कही है । उसका मेडिकल जांच 5 दिन बाद करवाया गया । जाँच दल के तीन सदस्यों ने बिहार के पुलिस महानिदेशक से मिलकर न सिर्फ जाँच रिपोर्ट सौंपा बल्कि पूरी वस्तुस्थिति से अवगत कराया । पुलिस महानिदेशक ने स्वयं यह बात कही की अगर पीड़िता के पास इस प्रकार से पुलिस रहेगी तो उसकी मनःस्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ेगा और वह सामान्य नहीं हो पायेगी । लेकिन पुलिस नहीं हटाया गया और पीड़िता को उसी नजरबन्द स्थिति में रखा गया । साथ हीं पुलिस इस सामूहिक बलात्कार के घटना को छेड़-छाड़ बनाने पर अमादा रही ।
कोई करवाई न होता देख जहानाबाद के नागर समाज एवं राज्य के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रशासन  के रवैया के विरुद्ध एक मार्च निकालने का निर्णय लिया जो कि 15 मई 2018 को आयोजित किया गया जिसमे जहानाबाद, गया, पटना के आम लोग एवं पुरे बिहार में कार्य कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एक शांतिपूर्ण रैली का आयोजन किया । रैली  के दौरान व्यवस्था में लगे पुलिसकर्मी (जिन्होंने अपना मुहं काला तौलिया से बांध रखा था) ने रैली में शामिल महिलाओं और लडकियों की तस्वीरें उतारनी शुरू की और मना करने पर महिलाओं से अभद्र व्यवहार किया । महिलाएं रैली लेकर समाहरणालय पहुंची और उन्होंने जिलाधिकारी से मिलने की मांग की ताकि अपनी बात रख सके लेकिन वे नहीं मिले । आमतौर पर जिलाधिकारी लोगों से मिलते हैं और उनकी मांगों को सुनते भी हैं लेकिन सुशासन में पदाधिकारी आम लोगों से नहीं मिलते । इतना ही नहीं प्रशासन  के काम में बाधा पहुँचाने के लिए जाँच दल के तीन सदस्यों को नामजद करते हुए तथा अन्य पर प्रशासन  द्वारा मुकदमा दायर कर दिया गया । सन्देश साफ़ है कि कोई भी पहल जिससे राज्य के मुखिया की छवि ख़राब होती है बर्दास्त नहीं किया जायेगा ।
ज्ञात हो कि पुलिस ने सामूहिक बलात्कार की इस घटना को मामूली छेड़-छाड़ की घटना बताया और अखबारों में यह खबर आई कि आला पुलिस अधिकारी स्वयं इस मामले को देख रहे हैं और दोषियों को गिरफ्तार किया गया है । इतना कुछ सिर्फ यह दिखाने के लिए कि बिहार में शासन व्यवस्था दुरुस्त है और ऐसे मामलों में कोई कोताही नहीं बरती जाएगी । पुलिस ने स्वयं का पीठ थपथपाया और मीडिया ने भी इसका खूब महिमामंडन किया । लेकिन जमीनी सच्चाई यह थी कि सामूहिक बलात्कार के मामले को छेड़खानी बताकर पुलिस आरोपियों की भी मदद कर रही थी और राज्य के मुखिया के छवि को बचाने की कोशिश भी । यह भी बताना जरुरी है इसके बाद फिर गया जिले में दो विडियो वायरल हुआ है और पटना जिला जो की राज्य की राजधानी में ही कई घटनाएँ सामने आई हैं सामूहिक बलात्कार और उसके बाद हत्या की ।
सनद रहे कि एक समय था जब ऐसे मामलों और पुलिस एवं प्रशासन  के गैर जिम्मेदाराना रवैया को जंगल राज बताकर बिहार के निवर्तमान मुखिया सत्ता में आये थे तथा सुशासन बाबू और विकास पुरुष कहलाये । इतना हीं नहीं जब निवर्तमान विपक्ष के साथ चुनाव लड़ कर सत्ता में आये तब अपने आप को भ्रस्टाचार विरोधी बताने के लिए जनादेश का अपमान भी किया । हाँ जब उन्हें तीसरी बार सत्ता मिली तो उन्होंने विकास को ताक पर रख दिया और महिलाओं के हित में शराबबंदी, दहेज़ विरोधी अभियान, बाल विवाह रोकने के लिए अभियान इत्यादि मुद्दे उठाये, या यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि सामाजिक मुद्दों का राजनैतिकरण किया ।

बिहार में अब न तो सुसाशन है, (जिसकी बानगी नंदगाँव (बक्सर) में राज्य के मुखिया के काफिले पर हमले और उसके बाद दलितों पर पुलिसिया अत्याचार तथा विकास यात्रा के दौरान विभिन्न जिलों में जबरदस्त विरोध से मिलती है ) न ही महिलाओं के हक़ की बातें क्योंकि जहाँ हर रोज लडकियाँ और महिलाएं अपनी अस्मत बचाने को संघर्ष कर रही हैं वहाँ महिला सशक्तिकरण की बात बेमानी लगती है । विकास की चिड़िया तो पहले ही फुर्र हो चुकी थी । यह तो भविष्य के गर्भ में है कि देश के बैंक अपने नॉन-परफोर्मिंग एसेट से और बिहार की जनता अपने नॉन-परफोर्मिंग मुखिया से कैसे निबटती है ।



First posted on Youth Ki Aawaaz by me 

एक अधूरी कविता

ये उछलते-कूदते शब्द अख़बारों के ये चीखती आवाजें बुद्धू-बक्सदारों के ये अजीब बेचैनी इन रसूखदारों के ये छलांग, ये चीखें, ये बेचैनी, ये फ...