Tuesday, May 29, 2018

क्योंकि मैं मजदूर हूँ


तेरे वादों के करीब
तेरे कृत्यों से दूर हूँ
हक़ की बात नहीं करता
क्योंकि मैं मजदूर हूँ

हर सितम सहता हूँ
उफ़ नहीं करता हूँ
तख़्त नहीं पलटता मजबूर हूँ
क्योंकि मैं मजदूर हूँ

खड़ा रहता हूँ चौराहे पर
ताकि दो हाथों को काम मिले
रोटी की जद्दोजहद में चूर हूँ
क्योंकि मैं मजदूर हूँ

खेतों में या अट्टालिकाओं पर
खून जलाता दिख जाता हूँ
बदबूदार पसीने से सराबोर हूँ
क्योंकि मैं मजदूर हूँ

तेरी कुर्सी की ओर देखते
पीढियां बीत गई सोंचते
बदलाव और विकास से दूर हूँ
क्योंकि मैं मजदूर हूँ ....




(तस्वीर स्रोत : DNA India)

4 comments:

  1. बहुत खूब !!!
    हर ख्वाहिशोंं से दूर हूँ
    क्योंकि...
    जीवन की परेशानियों से सराबोर हूँ
    क्योंकि...
    कोई क्यूँ सुने मेरी व्यथा.. बहुत मजबूर हूँ,
    क्योंकि...
    जिन्दा हूँ पर जिन्दगी से मरहूम हूँ,
    क्योंकि...

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  2. बहुत ही सुंदर कविता है मजदूरों की व्यथा सजीव चित्रण करती है

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