वे आवाज नही उठाते
उनके गले में खराश है
वे अब सपने नहीं देखते
सबके सब निराश हैं
अब दौड़ नही पाते
क्योंकि वे बदहवाश हैं
वे तुम्हारा झंडा ढोते
उन्हें कुछ तलाश है
तेरे दोमुंहेपन के चलते
युवाओं का सत्यानाश है
#शब्दांश / रणविजय
ये उछलते-कूदते शब्द अख़बारों के ये चीखती आवाजें बुद्धू-बक्सदारों के ये अजीब बेचैनी इन रसूखदारों के ये छलांग, ये चीखें, ये बेचैनी, ये फ...
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