अपना सर पाषाण पर पटक लो
या अपनी बुद्धि को रेती से घस लो
सच की पहचान तो तुझे खुद करनी होगी
तेरे लिए अब दूसरा कबीर कहां से लाऊँ
इंसानियत के दरकते रिश्तों से सीख लो
या फिर वीरान हुई गलियों से पूछ लो
जागकर अब आह्वान तुझे ही करनी होगी
तेरे लिए अब पंत और दुष्यंत कहां से लाऊँ
#शब्दांश / रणविजय
बहुत खूब ...
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