Sunday, June 17, 2018

अपने मसीहा के ख़िलाफ़

जब बोलता हूँ
तो उन्हें बुरा लगता है
क्योंकि ये जो शब्द बान हैं
ज्यादा गहरे
घाव कर जाते हैं
लेकिन ये घाव उन घावों
से ज्यादा दुखदायी नहीं हो सकते हैं
जो तुमने वर्षों से
मेरी आत्मा में सुई चुभोकर
घाव किये हैं
मेरी अगुआवाई का जिम्मा लेकर
जिस अंधेर कमरे में हमे धकेला है
आज ये आवाज
उसी कमरे के घुटन से पैदा हुई है
जिसमे हम तुम्हारी धूर्तता से
पीढ़ी दर पीढ़ी घुटते रहे
और तुम, रौशनी में, हमारे मसीहा बनते रहे
ये आवाज, उस मसीहे के भी खिलाफ है
ये आवाज, उस सत्ता के भी खिलाफ है
हम ये आवाज
रास्ता ढूंढ़ने के लिए नहीं लगा रहे हैं
बल्कि उस शोषक और हमारे मसीहा दोनों के
बनाये उस तिलिस्मी कारागार
को उड़ा देने के लिए लगा रहे हैं
आवाज से जब वो इतना दुःखी हो रहा है
तो सोंचो
उनके तिलिस्म के टुकड़े
जब उनपर गिरेंगे तो
क्या होगा ?
वो बौखलायेंगे, चिल्लायेंगे,
मिलकर हमले करेंगे
इतना ही नहीं
हमारे ही टुकड़े करने की कोशिशें करेंगे
घबराना नहीं, बहक जाना नहीं
ये तम मिटेगा
उजाला आएगा ,
इस रात की सुबह जरूर होगी
बस अपनी आवाज़ें बुलंद करते रहो
उनके ख़िलाफ़ जो हमे लूटते रहे
और अपने मसीहे के ख़िलाफ़
जिसने हमे लड़ने नहीं दिया

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