Friday, July 28, 2017

ढर्रे वाली राजनीति क्षेत्रीय पार्टियों को समाप्त कर देगी

बिहार में सत्ता परिवर्तन के साथ इसपर बहस चल रही है कि 2019 की लड़ाई हेतु भाजपा ने शसक्त जमीन तैयार कर ली है. राजनेता अपनी डफली और अपने राग में लगे हैं. आज सत्य तो यह है कि कोई धरातल पर खड़ा हीं नहीं होना चाहता है...

सब चमचमाती गाडियों में बैठकर चलते चलते मिडिया के माइक और कैमरा को देखकर अपने दिल की गुबार निकाल देते हैं. जो थोड़े कद में बड़े हैं वे घर में सोफे पर बैठकर अपना विचार प्रकट कर रहे हैं...

सभी दलों के प्रवक्ता जो मीडिया के दल के पास खड़े हैं वे थोडा गला फाड़ लेते हैं और अपनी अपनी पार्टी के तरफ से पक्ष रख रहे हैं हलाकि उन्हें ये मालूम है कि वे जो कुछ भी कह रहे हैं बस रफ्फु कर रहे हैं और अभी अगर आलाकमान ने ऊपर कुछ और तय किया तो थोड़ी देर बाद इसके विपरीत भी रफ्फु करना होगा...

कई लोग फेसबुक पर दुखी होकर ऐसे पोस्ट कर रहे हैं जैसे किसी ने सेकुलरिज्म के सपनों पर घड़ों पानी उरेल दिया हो. वन्ही कुछ लोग खुश हो रहे हैं और कल तक जो नितीश कुमार को गलियां देते नहीं थक रहे थे वे भ्रस्टाचार के विरुद्ध लड़ाई का झंडा उठा लिए हैं.

जो हिंदुत्व और मनुवादी व्यवस्था में विश्वास करते हैं वो तो खुश होंगे और ये लाजिमी भी है क्योंकी इस सत्य को तो मानना होगा कि सेकुलरिज्म की लड़ाई कमजोर हुई है और भगवा न सिर्फ मजबूत हुआ है बल्कि एक छद्म आवरण तैयार करने में भी सफल रहा है और इस आवरण को नेपथ्य के परदे के रूप में इस्तेमाल कर वे हर मंचन करेंगे ...

वहीं  दूसरी ओर सेक्युलरिस्ट इसे विश्वासघात और भस्मासुर और न जाने कितने हीं जुमले बोलकर अपने आप को संतुष्ट कर रहे हैं.... यह कोई नहीं कह रहा है कि कांग्रेस और राजद के मुखिया के अदुरदर्शिता और पिछली गलतियों से नहीं सिखने के कारन यह हुआ है ...

आज के ज़माने में लालू यादव का 2000 से पहले वाली राजनीति के तरीके का इस्तेमाल करना और उनकी हठधर्मिता ने राजद को विपक्ष में बिठा दिया है ... यह तो हो हीं नहीं सकता कि लालू जैसे मजे हुए खिलाड़ी को विधानसभा अध्यक्ष के पद का महत्त्व हीं पता नहीं हो ..... उन्होंने फिर मलाईदार मंत्रालयों के लिए विधानसभा अध्यक्ष का पद छोड़ दिया जिसका खामियाजा उन्हें कल 26 जुलाई 2017 को भुगतना पड़ा...

लालू यादव ने भाजपा से लड़ाई का वही तरीका अपनाया है जो उन्होंने कांग्रेस से लड़ने के लिए अपनाया था या ये कहना ज्यादा सही होगा की लालू यादव यह समझ हीं नहीं पा रहे हैं कि भाजपा कांग्रेस नहीं है ...... भाजपा ने बड़े हीं चालाकी से लोगों के भावना को अपने कब्जे में लिया है .... भाजपा लोगों के पास पोस्ट ट्रुथ (जिसमे सच्चाई न के बराबर और भावनात्मक आपूर्ति अधिक हो) के साथ जाती है जिससे लोगों को भावनात्मक सुख की अनुभूति होती है और लोग साथ खड़े हो जाते हैं ... भाजपा का हर चाल छद्म मुद्दों और भावनात्मक भूख पर आधारित होता है....

कांग्रेस/राजद/बसपा/सपा/तृणमूल कांग्रेस एवं अन्य क्षेत्रीय पार्टियाँ इसको पहचान कर इसपर हमला नहीं कर पा रही है... राजद, कांग्रेस, बसपा, तृणमूल कांग्रेस या सपा के रणनीतिकार या वार रूम  के संचालक में से कोई भी भाजपा के पोस्ट ट्रूथ में से सत्य और भावनात्मक तृप्ति को अलग करने में सक्षम नहीं है ... ये आज भी कोसने में विश्वास करते हैं और हमदर्दी बटोरने की कोशिश करते हैं...

कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी भी इतना नहीं कर पा रही है की लोगों के सामने यह तथ्य लाये कि  मोदी सरकार जो भी योजनायें ला रही है वह सिर्फ कांग्रेस के समय बनाई  और लाई गई योजनाओं का बदला हुआ नाम है.... ये लोगों को बताना होगा की सच क्या है ... क्योंकि इस देश में आप ये उम्मीद नहीं लगा सकते कि  लोग खुद रिसर्च कर सब जान और समझ लें ..... मनरेगा जैसी अच्छी योजनाओं का जो हश्र ये सरकार कर रही है उसपर कोई आवाज नहीं उठाया गया तो इस कमजोरी और कहिलियत का फायदा तो भाजपा को मिलना हीं था

राजद बेहतर रुख अख्तियार कर सकती थी लेकिन लालू यादव ने पुराने स्टाइल में तेजस्वी को शहीद बनाने का प्रयास किया और कांग्रेस ने अपने खुद के अनुभवों का इस्तेमाल नहीं किया.....

अब इस हार के लिए जद यू या भाजपा को दोष देने के वजाय कांग्रेस और राजद अगर बेहतर पिपक्ष की भूमिका निभाए और भाजपा के पोस्ट ट्रुथ से लड़ने के लिए वार रूम बनाये तो इस लड़ाई में वापसी होगी अन्यथा कन्वेंशनल स्टाइल ऑफ़ पॉलिटिक्स तो नहीं चलेगा...

भाजपा का लक्ष्य सभी क्षेत्रीय पार्टियों को ख़त्म करना है और अगर ये सभी क्षेत्रीय पार्टियाँ ढर्रे वाली राजनीति करेंगी तो भाजपा को रोका नहीं जा सकता है ..... और इसके लिए भाजपा को दोष देना उचित नहीं होगा क्योंकि जब लड़ाई के हथियार बदलते हैं तो दोनों खेमे में आधुनिकरण होता है अन्यथा एक खेमे को घुटने टेकने हीं पड़ते हैं ....

4 comments:

  1. सही कहा आपने लेकिन ये लोग सिखने को तैयार हीं नहीं हैं ... ऐसे में इस देश को भाजपा की जरुरत है

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  2. स्मृति वर्माMay 29, 2018 at 10:51 PM

    बहुत खूब !!!
    हर ख्वाहिशोंं से दूर हूँ
    क्योंकि...
    जीवन की परेशानियों से सराबोर हूँ
    क्योंकि...
    कोई क्यूँ सुने मेरी व्यथा.. बहुत मजबूर हूँ,
    क्योंकि...
    जिन्दा हूँ पर जिन्दगी से मरहूम हूँ,
    क्योंकि...

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