अन्न दाता
मैं अन्न दाता हूँ
मैं देश का भाग्य विधाता हूँ ।
ऐसा
कहने वाले तुम हो
मैं सुनकर चुप रह जाता हूँ ।
आशा
बस इतनी है कि
तेरे
भाषणों में अभी आता हूँ ।
तेरे
भाषण से पेट नहीं भरता
मैं
भूखा रह जाता हूँ ।
तुम
बारिश में छतरी ओढ़ लेते हो
मैं उसमे भीग कर खिल जाता हूँ ।
तुम
महलों में चैन से सोते हो
मैं झोपडी में बिलबिलाता हूँ ।
बाढ़
सुखाड़ ओला वृष्टि
सबकी
चोट मैं खाता हूँ ।
फिर
तेरे वादों के मरहम से
खुद
को तसल्ली देता हूँ ।
मरहम
तेरे अधिकारी खाते
मैं खाली हाँथ लौट आता हूँ ।
ले
जा अपने वादे भाषण
मैं खेती छोड़ जाता हूँ ।
ना
बनना मुझे भाग्य विधाता
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