Thursday, August 3, 2017

अन्न दाता

अन्न दाता


मैं अन्न दाता हूँ
मैं देश का भाग्य विधाता हूँ
ऐसा कहने वाले तुम हो
मैं  सुनकर चुप रह जाता हूँ
आशा बस इतनी है कि
तेरे भाषणों में अभी आता हूँ

तेरे भाषण से पेट नहीं भरता
मैं भूखा रह जाता हूँ
तुम बारिश में छतरी ओढ़ लेते हो
मैं  उसमे भीग कर खिल जाता हूँ
तुम महलों में चैन से सोते हो
मैं  झोपडी में बिलबिलाता हूँ

बाढ़ सुखाड़ ओला वृष्टि
सबकी चोट मैं खाता हूँ
फिर तेरे वादों के मरहम से
खुद को तसल्ली देता हूँ
मरहम तेरे अधिकारी खाते
मैं  खाली हाँथ लौट आता हूँ

ले जा अपने वादे भाषण
मैं  खेती छोड़ जाता हूँ
ना बनना मुझे भाग्य विधाता
ना हीं देश का अन्न दाता हूँ .....


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